Monday, April 25, 2016

पढ़े भी .... सिर्फ फॉरवर्ड न करें ....

"एक तस्वीर हज़ार शब्द के बराबर है।" या "तस्वीर सच बोलती है" जैसे जुमले अब बिलकुल अप्रासंगिक हो चुके हैं। 4G और शानदार मोबाइल कैमरों के युग में सोशल मीडिया के सारे प्लेटफार्म visual media को बहुत महत्त्व दे रहे हैं। लेकिन इस दौर में एक और बेहद खतरनाक प्रवृत्ति उभर कर सामने आई है , तस्वीरों और वीडियो में विभिन्न एडिटिंग टूल्स की सहायता से छेड़खानी कर उनकी मूल प्रवृत्ति को बदल दिया जाता है। कई बार ऐसा हास्यबोध के तहत भी करते हैं परंतु अधिकतर मामलों में इनका दुरूपयोग ही सामने आ रहा है। चाहे किसी सामान्य कंकाल को घटोत्कच का बना दिया जाय या किसी नेता को उसके प्रतिपक्ष के नेता के साथ गलबहियां करते दिखा दिया जाय। इसका सबसे बड़ा दुरूपयोग विभिन्न सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ने मरोड़ने के लिए किया जा रहा हैं। और आज ऐसी विकृत तस्वीरों और वीडियो को पालक झपकते फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप्प के माध्यम से हज़ारों लोगों के बीच पहुँचाया जा सकता है। विशेष रूप से भारत जैसे देश में जहाँ हर हाथ में मोबाइल तो पहुच गया है पर इस देश का एक बड़ा जन समुदाय आधुनिक संचार तकनीकी से प्राप्त होने वाली सारी सूचनाओं को तार्किक रूप से प्रोसेस करने में असमर्थ होता है और बड़े मजे के साथ बिना इसके दुष्परिणाम को सोचे "फॉरवर्ड" करता रहता है। ऐसा करते समय कई बार लोग अनजाने में बेहद गंभीर आपराधिक कृत्य करते है। व्यक्ति जब अपने ड्राइंग रूम में आराम से बैठ अपने मोबाइल से कोई विकृत असत्य असामाजिक सन्देश फॉरवर्ड करता है तो उसे लगता है की वो नितांत व्यक्तिगत कार्य कर रहा है । वो भूल जाता है कि आधुनिक तकनीकि युग में मोबाइल का एक टच उसे तत्काल एक ऐसी साइबर दुनिया में पंहुचा देता है जो हर प्रकार की भौगोलिक सीमाओं से परे एक बेहद विशाल दुनिया है। फेसबुक और व्हाट्सऐप के यूजर बेस को अगर जनसँख्या मानें तो यह अपने आप में विश्व का सबसे बड़ा देश हो जाएगा। ऐसी परिस्थिति में हमें लोगों की पहुच तकनीकी तक पहुँचाने के साथ साथ उन्हें उससे प्राप्त होने वाली सूचनाओं की पहचान करने की क्षमता भी विकसित करनी होगी अन्यथा ये किसी बच्चे के हाथ में गाड़ी का स्टीयरिंग व्हील देने जैसा है। जब तक ऐसा नहीं होता सरकारों को समाज के सभी वर्गों को विश्वास में लेते हुए सोशल मीडिया कंटेंट रेगुलेशन के बारे में ठोस नीति भी बनानी होगी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर समाज के एक बड़े हिस्से को खतरनाक रूप से विकृत फ़ॉर्वर्डेड सामग्री के सामने असहाय नहीं छोड़ा जा सकता है। वीडियो और फ़ोटो से छेड़छाड़ रोकने के लिए पहले से क़ानून हैं इसके बावजूद ऐसी गतिविधिया रुक नहीं रहीं। इसका मूल कारण अज्ञानता है। अगर लोग कोई भी मैटर फॉरवर्ड करने से पहले सोचें कि ऐसा करके वो कोई गुनाह तो नहीं कर रहे है , उसी समय वो उस मैटर को रिजेक्ट कर सकते हैं। बैंड विड्थ की चिंता के साथ आज कंटेंट क्वालिटी की चिंता करने का समय आया गया है।

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