Tuesday, February 21, 2017

वेद प्रकाश शर्मा का जाना

पिछले दिनों हिंदी मास मीडिया में एक दुखद ख़बर आयी , प्रसिद्ध उपन्यासकार वेद प्रकाश शर्मा के असामयिक निधन की । वेद जी के निधन के दुःख में एक अप्रत्याशित सुख का अनुभव हुआ जब उनके निधन की ख़बर  को हिंदी के प्रमुख अख़बारों ने कम ज़्यादा लेकिन कुछ न कुछ जगह दी। लेकिन इसी से सोशल मीडिया पर एक बहस भी छिड़ गयी जो कि " कौन है ये वेद प्रकाश" से लेकर "क्यों साहित्यकार नहीं थे वेद" के स्केल पर अलग अलग तीव्रता के साथ जम गयीं। 

 साहित्य की कई विधाएँ होती हैं। वेद प्रकाश तथा कथित लुगदी साहित्य पल्प फ़िक्शन के genre में आते थे । आज के चेतन भगत , आमिश त्रिपाठी , सवी शर्मा जैसे लोग भी पल्प फ़िक्शन ही लिखते हैं बस इनका पल्प थोड़ा मँहगा होता है।  अगाथा क्रिस्टी, जेफ़्री आर्चर , जेम्ज़ हेडली चेस जैसे लोग भी इसी कैटेगॉरी के हैं। चूँकि ये आम आदमी की पहुँच वाले दामों में लिखते थे, cost cutting के लिए सबसे सस्ते वाले काग़ज़ पर छपते थे इसलिए बुकर पुरस्कार वाली ब्रीड ने इन्हें पल्प फ़िक्शन का नाम दे दिया। ये आम जन की भाषाओं में प्रेम, वासना, अपराध, रहस्य, रोमांच को परोसते थे। ये सेक्स को बिलकुल वैसे ही लिखते थे जैसे होता है , प्रतिष्ठित स्थापित साहित्यकारों की तरह कविता की शैली में नहीं । ये काल्पनिक, superhero आदर्श नायकवाद के जनक भी थे जैसे लोग होते नहीं परंतु होना चाहते हैं। सबसे बड़ी बात की ये लोगों का मनोरंजन करते थे। इनके जैसे अन्य उपन्यासकार या पॉकेट बुक रचनाकार लोगों को उनकी समझ में आने वाली भाषा में साहित्य किताबों से जोड़ते है । पढ़ने की आदत डालते है। इसी समाज की प्रवृत्ति एवं चरित्र का चित्रण करते हैं। जे के रोलिंग हैरी पोटर जैसे बे सर पैर के फ़िक्शन लिख कर अरब पति हो जाती है , सुजान कॉलिंज़ हंगर गेम्ज़ लिख कर , ई एल जेम्ज़ फ़िफ़्टी शेड्ज़ ओफ ग्रे जैसी किताबें लिख कर बेस्ट सेलर्ज़ बन जाते हैं। फ़िफ़्टी शेड्ज़ ओफ ग्रे को या अन्य कोई भी इरॉटिक वर्ग की किताब को आजकल लड़के लड़कियाँ बिना किसी हिचक के मेट्रो में, सार्वजनिक स्थानों में पढ़ते हैं और बीस साल पहले का हिंदुस्तानी युवा मस्तराम को बाथरूम में चुप कर पढ़ता था। सिर्फ़ भाषा का मामला नहीं है, सामाजिक स्वीकार्यता के मापदंड भी बदलते हैं। आज के दौर में मनोरंजन के इतने साधन हैं, हर तरह के साहित्य तक पहुँच है लोगों की इसलिए १९९० के वेद प्रकाश शर्मा को २०१७ में तार्किक साबित करना , अपने समय की ज़रूरत सिद्ध करना, लोकप्रिय रचनाकार सिद्ध करना कठिन ही नहीं असम्भव है। मैंने ख़ुद १९९५ के बाद से उन्हें नियमित रूप से नहीं पढ़ा। क्योंकि अंग्रेज़ी समझ आने लगी , सिडनी शेल्डन हाथ में लेकर चलने से ट्रेन में अग़ल बग़ल बैठे लोग प्रभावित हो लगे थे। साहित्यकार कहलाने का अधिकार भी अब एक कास्ट सिस्टम की तरह हो गया है जिसमें ब्राह्मण वर्ग अपनी जगह बचाने के लिए हर प्रयास कर रहा है। अंग्रेज़ी उपन्यास हिंदुस्तान में ५०० रुपयों के मिलते है इसलिए पल्प फ़िक्शन होने के बाद भी ऊँचे दाम और अंग्रेज़ी के कारण हेय दृष्टि से नहीं देखे जाते। हालाँकि चेतन भगत को भी अंग्रेज़ी का स्वयंभू प्रबुद्ध पाठक वर्ग उपहास भरी दृष्टि से देखता है । एक वर्ग यह भी कहता है कि जो जन जन के मन तक पहुँच गया उसे अपने आपको साहित्यकार कहलाने की चिंता क्यों? मेरा प्रश्न दूसरा है कोई भी प्रकाशन साहित्य है अथवा नहीं ये तय करने का अधिकार किसे है। सरस सलिल पत्रिका का नाम आपने ज़रूर सुना होगा जो अहा ज़िंदगी या हंस की श्रेणी में नहीं थी लेकिन लाखों के सरकुलेशन के साथ सभी पत्रिकाओं के सीने पर मूँग दलती थी। समाज में नाम हो , अच्छा समझा जाय ये मानव स्वभाव की क़ुदरती चाहत होती है। कुछ लोग सामाजिक प्रतिमानो को ठुकरा कर विचलन वादी नए प्रतिमान बनाते हैं और कई उन्ही प्रतिमानों के तहत अपनी हाज़िरी चाहते हैं। क्या ग़लत है इसमें? पल्प फ़िक्शन के स्टिग्मा को हटाने के लिए सुरेंद्र मोहन पाठक जैसे लोग अब हार्पर कोलिंस से अनुबंध कर ५० की किताब अच्छे चिकने काग़ज़ पर २०० में छाप रहे हैं और लिटरेचर फ़ेस्टिवल्ज़ में ख़ुद को आमंत्रित करवा रहे हैं। मारियो पूजो की God Father भी पल्प फ़िक्शन में ही आती है । God father की ३ से ४ करोड़ copies बिकी हैं अब तक और वेद प्रकाश शर्मा की "वर्दी वाला गुंडा" की लगभग ८ करोड़ प्रतियाँ बिकी हैं। एक बात और ये सभी  किताबें भाषा, संस्कार, संस्कृति के मामले में हमेशा स्तरीय रही। हाँ पटकथा पर पसंद अपनी अपनी होती है। कभी कभी प्रसिद्धि भेड़ चाल और समाज के एक वर्ग विशेष द्वारा तय किए प्रतिमानो की ग़ुलाम भी होती है। उदाहरण के लिए एक मूवी आयी शॉशैंक रिडेम्प्शन ,जो आयी और फ़्लॉप हुई किसी ने नोटिस भी नहीं लिया। लेकिन जब अचानक इसी फ़िल्म को ऑस्कर मिला तो इस फ़िल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित कर दिए। 

एक बार पुनः वेद प्रकाश जी को नमन।

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